गीत,कविता और कहानी |
Posted: 24 Jul 2020 08:36 PM PDT फिर दिल लेकर आया दर पे अब तो बाहर आजा । पागल दिल बस तुझे पुकारे खोल अपना दरवाजा । दिल से दिल का बंधन है तो फिर क्यों है रूसवाई । आशिक़ हूं मै तेरा मुझको एक-झलक दिखलाजा । तेरे दरस की आस लेकर, आया मै विश्वास लेकर । आस ना टुटे उम्मीदों की, इस दिल को बहला जा । काजल,बिंदिया,हार छोड़,अभी सभी श्रृंगार छोड़ । तन को प्यासा रहने दे बस मन की प्यास बुझाजा । महसुस करूं मै रूह तलक है ये मन की ख्वाहिश । मुझे गैर ना समझ तेरा ही हूं मुझमे आज समाजा । **कृष्णा पारकर** |
Posted: 24 Jul 2020 08:06 PM PDT काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।। आए हे जबले करोना बीमारी । मंहगाई बाढ़ गेहे होगे लाचारी । काम बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।। लॉकडाउन मे आएंव तोर घर । चटनी समोसा लाएंव तोर बर । हवा झन खवाबे तै मोला जेल के ।। काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।। गोरी मोर मया के लाज रख ले । चाही त दु किलो प्याज रख ले । का पाबे तै मोर दिल संग खेल के ।। काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।। चल मानले कहना दाऊ बघेल के ।। बेच ना तहुं, अब गोबर सकेल के ।। काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।। **कृष्णा पारकर** |
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