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शनिवार, 25 जुलाई 2020

गीत,कविता और कहानी

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गीत,कविता और कहानी


कविता

Posted: 24 Jul 2020 08:36 PM PDT

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फिर दिल लेकर आया दर पे अब तो बाहर आजा ।
पागल दिल बस तुझे पुकारे खोल अपना दरवाजा ।

दिल से दिल का बंधन है तो फिर क्यों है रूसवाई ।
आशिक़ हूं मै तेरा मुझको एक-झलक दिखलाजा ।

तेरे दरस की आस लेकर, आया मै विश्वास लेकर ।
आस ना टुटे उम्मीदों की, इस दिल को बहला जा ।

काजल,बिंदिया,हार छोड़,अभी सभी श्रृंगार छोड़ ।
तन को प्यासा रहने दे बस मन की प्यास बुझाजा ।

महसुस करूं मै रूह तलक है ये मन की ख्वाहिश ।
मुझे गैर ना समझ तेरा ही हूं मुझमे आज समाजा ।

                  **कृष्णा पारकर**
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कविता

Posted: 24 Jul 2020 08:06 PM PDT

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काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।।

आए हे जबले करोना बीमारी ।
मंहगाई बाढ़ गेहे होगे लाचारी ।
काम बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।।

लॉकडाउन मे आएंव तोर घर ।
चटनी समोसा लाएंव तोर बर ।
हवा झन खवाबे तै मोला जेल के ।।
काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।।

गोरी मोर मया के लाज रख ले ।
चाही त दु किलो प्याज रख ले ।
का पाबे तै मोर दिल संग खेल के ।।
काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।।

चल मानले कहना दाऊ बघेल के ।।
बेच ना तहुं, अब गोबर सकेल के ।।
काम-बुता चलत हे पेल-ढपेल के ।।

         **कृष्णा पारकर**
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