गीत,कविता और कहानी |
Posted: 31 Oct 2020 01:03 AM PDT घरो घर लगे हे तारा ----------****---------- गंवई गांव ह सून्ना लागे, गली खोर अउ पारा। फदके कातिक चिलचिल बूता, घरो घर लगे हे तारा।। बड़े बिहनिया सुत उठके, भउजी भारा डोहारय। काम बूता बियापय नहीं, मुच मुच मुस्की ढारय।। सालभर के मेहनत...जेन मुहूँ के काँवरा! गंवई गांव ह.........गली खोर अउ पारा!! फदके कातिक....घरो घर लगे हे तारा!!! बासी पेज सब खेते डहर हे, थोरकुन छांव म सुरतावय। आज के बासी काली के साग, खाके जीव ल जुड़ावय।। भूख म घलो मिठाथे..अलोना होय के खारा! गंवई गांव ह........गली खोर अउ पारा!! फदके कातिक...घरो घर लगे हे तारा!!! गरवा बरोबर सिधवा होथें, अपन काम ले काम हे। जुरमिल के सब संग रहिथें, गांव म चारो घाम हे।। छत्तीसगढ़िया सबले ब..आवय एके नारा! गंवई गांव ह........,गली खोर अउ पारा!! फदके कातिक.... घरो घर लगे हे तारा!!! -------------------******-------------------- |
You are subscribed to email updates from गीत,कविता और कहानी. To stop receiving these emails, you may unsubscribe now. | Email delivery powered by Google |
Google, 1600 Amphitheatre Parkway, Mountain View, CA 94043, United States |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें