गीत,कविता और कहानी |
पावस (कुण्डलियाँ:-तोषण चुरेन्द्र दिनकर) Posted: 24 Jun 2020 06:38 AM PDT 1. पावस पर्वत में गिरे,मुदित हुआ संसार। लगती धरणी श्यामला,छाई खुशी अपार।। छाई खुशी अपार,मगन हो झूमे सारे। हरा भरा परिवार, वृक्ष भी वारे न्यारे। दिनकर बैठा मौन,देखकर गहन अमावस। सकल विश्व में धूम,लौट आई है पावस। 2. आई है पावस लौट कर,फिर धरती के पास। हरने धरती की व्यथा,करने जीव उजास।। करने जीव उजास,गीत है सावन गाते। भरा भरा है ताल,राग जो झिंगु सुनाते। भड़क उठी है मेघ ,बहे है नित पुरवाई। दिनकर देखे मौन,झूम के बरखा आई। तोषण चुरेन्द्र दिनकर डौंडी लोहारा बालोद छत्तीसगढ़ |
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