*बाकी है...* मुश्किलों के दौर में एक आस बाकी है। दूर तुम भी दूर हम भी एहसास बाकी है। सम्हाले रख्खा है अब तलक ये दिल को, आने को अभी नया मधुमास बाकी है। जल्द मिटेंगे गिले शिकवे बुरे वक्त सारे, दिन नव किरण का पल खास बाकी है। सुनी पड़ी मधुबन ओ कान्हा रसिया की, सुर्ख हुए वृंदावन की महारास बाकी है। चाहत "दिनकर" की मिलने की तुझसे, करने को बस रब से अरदास बाकी है। -तोषण कुमार "दिनकर" |
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गुरुवार, 23 अप्रैल 2020
बाकी है (मुक्त गजल:-तोषण कुमार चुरेन्द्र"दिनकर")
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