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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

कुण्डलियाँ दिनकर की


1.
गुंगे बहरे हो चले,माने कभी न बात।
अपनी धुन में हाँकते,दिन हो चाहे रात।
दिन हो चाहे रात,रहो करते मनमानी।
मिलकर अपना देश,बात ये सबने ठानी।
लगी चाल पर रोक,लगे है लाखों पहरे।
गाँव ठाँव में लोग,फिरे है गुंगे बहरे।

2.
रहती जिसमें है अकड़,सुखे वृक्ष वो जान।
निन्दा उसके भाग में,पाये कभी न मान।
पाये कभी न मान,लाख जो ठोकर खाते।
खोते अपने लोग,छुटे हैं सारे नाते।
कह दिनकर कविराज,मीठ जो मधुरस बहती।
बोल बड़े अनमोल, हिया के भीतर रहती।

रंग जीवन के (घनाक्षरी :-तोषण दिनकर)

Posted: 21 Apr 2020 02:18 AM PDT


घनाक्षरी
-रंग जीवन के

रंग अंग भीगे रंग लेकर नई उमंग,
दिन रहो होली रात दिवाली मनाइये।

सरसो के रंग लिए हियरा जो भंग 
पिए,
आम बन डाल पर मन को लुभाइये।

हरी हरी धरती ये शीतल जो करती ये,
झरझर नदियों सा,तरंग जगाइये।

सुख दुख संग लिये,जीवन में रंग लिये,
बांट चले भाईचारा रंग ये चढ़ाइये।

-तोषण दिनकर

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