गीत,कविता और कहानी |
| Posted: 20 Oct 2020 06:06 PM PDT हम आदिवासी के, इहिच पहिचान। एक तीर अउ एक कमान।। * जंगल झाड़ी बपौती ये, इही जिनगी इही रउती ये। नानपन के जानत हंन, इही हमर पुरखौती ये।। * मोर कोरा म करमा ददरिया, मंजूर परेवना नाचत हे। जुर मिल के रहिथों तब तो, मोर रखवारी ले बांचत हे।। * पेड़ कटइया उधवा नापत हे, महल अटारी अपन खापत हे। सुवारथ बर धुर्रा धरा के, परियावरन के माला जापत हे।। * जंगल मोर करम के बासा, झन करव एकर बिनासा। एक दिन अइसे होही संगी हावा पानी बर छुटही आसा।। * आओ सुग्घर ये तिहार मनाओ। जिनगी ल अपन सुफल बनाओ।।* परकिरिती के हम रखवार, जीव जंतु के मांड़ा आय। सबो जीव संग मोर मितानी, मोरों इंहेच बांड़ाआय।। * कांदा कुसा फर फरहरी, इही हमरअहारी ये। हमर हक तो होवय। नोहे जंगल सरकारी ये।। * डारा पाना पान पतौवा, सुग्घर मोर बिछौना हे । सबले सिधवा भोला भाला, जल जंगल मोर मिलौना हे।। _________*******____________ नोहर आर्य, फरदडीह,जिला बालोद,छत्तीसगढ़ । |
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