मोर मन पंछी परेवना रे... मोर मन पंछी परेवना रे उड़ँव फिरँव असमान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा... नदिया नरवा पहाड़ मा किंजरँव संग लेके पुरवाई रूख राई बन नाचँव गावँव बनके हवा हवाई होत संझनिया लहुटँव मँयहर निकलँव तुरते बिहान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा.... नहाके आथँव गंगा धार ले भोला ल भांथ नवाथँव चारों धाम के तीरथ करथँव धरती के गुन ला गाथँव करथे मन नंइ सुरतावँव संगी बइठके रूखवा टिपान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा..... भेद भाव ला जाने नाहीं राग मल्हरिहा गाथे बनके कोयली कुहके बन मा सबके मन ला भाथे खेत खार का भर्री भांठा भाथे मोला दइहान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा... दोहा पंथी करमा ददरिया बाँस गीत के तारी बंदन करथे रात दिन सब छत्तीसगढ़ महतारी हरियर हरिय रुख राई के चले पवन खलिहान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा... कहिथे दिनकर सबला संगी मन ला टन्नक राखव सुमता के दीया जला के सुख दुख मिलके बाँटव इही रीत हे जग जीव जगत के राखव बिधि बिधान मा मोर बर काहीं नाका नंइहे किजरँव पूरा जहान मा -तोषण कुमार चुरेन्द्र "दिनकर" डौंडी लोहारा बालोद छ.ग. |
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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
पानी का मोल(दोहाकार:-तोषण कुमार चुरेन्द्र"दिनकर)
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