गीत,कविता और कहानी

रंग न होतिस दुनिया म,
जम्मो बिरंगा जनातिस।
कहाँ कोनो फूल फुलतिस,
कहाँ कोन होली मनातिस?
रंग जानेन ,ढंग जानेन,
अउ जानेन ,आनी बानी ।
सबो रचे प्रकरीति म,
हावय घाम अउ पानी ।।
उत्ता धुर्रा के मारे मनखे,
नकली रंग बनावत हे।
दुसर के सब बरबाद करके,
नगदी अपन कमावत हे।।
रंग रंग के भेद ल जानव,
रंग घलो होथे रंगदार ।
रंग बदल के टेटका कस,
निकलथे पक्का धोखादार।।
नकली रंग ल छोड़ के,
मया के रंग म रंगतेन ।
जम्मो मन एके हो जतेन,
खांचा काबर खनतेन।।
ये जात धरम हमरे संग,
दूसर जीव म कहाँ पाबे?
अक्कल वाले के यहा हाल,
तब कोनो ल का समझाबे।।
अइसे होली खेलव संगी,
मया के बोहावव गंगा ।
खून के होली खेलव झन,
झन भड़कावव दंगा।।
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नोहर आर्य,
फरदडीह, जिला बालोद,छत्तीसगढ़ ।
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